पंजाब केसरी, २६ जनवरी २०१४ |
नई दिल्ली: देश में विकलांग मतदताओं को चुनाव के दौरान अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन राष्ट्रीय चुनाव आयोग इसे लेकर गंभीर नहीं लग रहा है। इस बात का खुलासा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। गत दिनों दिल्ली सहित अन्य राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों के दौरान भी विकलांग मतदाताओं को इनका खामियाजा भुगतना पड़ा है।
गुरूतेग बहादुर अस्पताल स्थित यूनिवर्सिटी कालेज आफ मैडिकल साइंस में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर एवं विकलांग अधिकारों के लिए लड़ाई लडऩे वाले डॉ. सत्येन्द्र सिंह ने जब सूचना के अधिकार के तहत विकलांग मतदाताओं की समस्याओं एवं उन्हें दूर करने के संबंध में किये गये प्रयासों की जानकारी राष्ट्रीय चुनाव आयोग से मांगी तो आयोग के जवाब चौंकाने वाले थे।
डॉ. सिंह ने का कहना है कि सरकार एक तरफ तो विकलांगों के सशक्तीकरण की बात कहती है, दूसरी तरफ राष्ट्रीय चुनाव आयोग के पास देश के विकलांग मतदाताओं के बारे में कोई डाटा ही नही है। इतना ही नेत्रहीन तो राष्ट्रीय चुनाव आयोग की वेबसाइट तक नही देख सकते जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय, नेशनल इंर्फोमेटिक्स सेन्टर और मुख्य आयुक्त निशक्तजन की ओर से इस बारे में स्पष्ट निर्देश जारी किये गये है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 2004 में विकलांग मतदाताओं को जागरूक करने के लिए टीवी एवं अखबार के माध्यम से कैंपेन चलाने के निर्देश दिये थे। प्राप्त जानकारी के तहत आयोग ने अभी तक ऐसे कोई कदम नहीं उठाये हैं।
संबंधित संस्थाओं से संपर्क करने में भी कोताही
मतदान में विकलांग जनों की भागीदारी सुनिश्चत करने के लिए राष्ट्रीय चुनाव आयोग ने राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों से कोई संपर्क नहीं किया। इसके अलावा आयोग ने विकलांगता के क्षेत्र में कार्य करने वाले किसी एनजीओ से भी विकलांग मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चत करने के लिए भी कोई संपर्क किया गया।
डॉ. सिंह ने कहा कि 2004 में जारी उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अभी तक पालन न किया जाना विकलांग मतदाताओं के मताधिकार का पूरी तरह हनन है। आम चुनाव में मुश्किल से 100 दिन बचे है। ऐसे में विकलांग मतदाताओं को होने वाली परेशानियों के निवारण के लिए हम अपनी आवाज नीति निर्माताओं, सरकार तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
नवोदय टाइम्स, २६ जनवरी २०१४ |
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