संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने विज्ञापन संख्या १६, १७, एवं १८/२०१३ के द्वारा सहायक प्रोफेसर के मेडिकल पदो के चयन के लिए ऑनलाइन भर्ती आवेदन पत्र निकाले हैं. यह पद शारीरिक विकलांग डॉक्टरो के लिए भी हैं लेकिन जैसे ही वह ऑनलाइन भर्ती आवेदन पत्र में अपनी विकलांगता दर्शाते हैं उनका आवेदन पत्र अस्वीकार कर लिया जाता है. यह कोई टेक्निकल त्रुटि नहीं है अपितु UPSC विकलांग डॉक्टरो को इन पदो पर सक्षम नहीं समझता है. २०११ में डॉ सतेन्द्र सिंह जो कि यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में फिजियोलॉजी में सहायक प्रोफेसर हैं को UPSC ने इसी पद के लिए अस्वीकार कर दिया.डॉ सिंह CAT गए और कोर्ट के आर्डर पर उन्हें और बाकि विकलांग लोगो को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया.
इसी इतिहास कि पुनरावृति दुबारा हुई जब इस महीने विज्ञापन संख्या १६/२०१३ में upsc दुबारा फिजियोलॉजी में सहायक प्रोफेसर के पदो पर आवेदन मांगे. इस बार फॉर्म ऑनलाइन था और फॉर्म भरने पर वेबसाइट ने दर्शाया कि आप विकलांग हैं और इस पद के लिए उपुक्त नहीं हैं. डॉ सिंह इसी पद पर यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में २००८ से पढ़ा रहे हैं. upsc का यह भेदभाव सिर्फ फिजियोलॉजी तक सिमित नहीं है. अगर विकलांग डॉक्टर साइकाइट्री, यूरोलॉजी में भी आवेदन करते हैं तो उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है. विज्ञापन संख्या १७/२०१३ में भी अगर आप अपनी विकलांगता बताते हैं तो आप पैथोलॉजी, रेडिओडोअग्नोसिस एवं अनेस्थेसिओलॉजी में चंडीगढ़ में आवेदन नहीं भर सकते. डॉ सिंह ने तुरंत मुख्य आयुक्त निशक्तजन एवं सेक्रेटरी, स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय को पत्र भेजा और उन्होंने तुरंत संज्ञान लिया. परन्तु मंत्रालय ने upsc ko सिर्फ डॉ सिंह का आवेदन स्वीकार करने को कहा. इस बात से व्यथित डॉ सिंह ने दुबारा पत्र लिखा और कहा के सभी विकलांग डॉक्टरो को आवेदन का नैतिक अधिकार दिलाया जाये.
अभी यह मामला सुलझा भी नहीं था कि upsc ने अपने नया विज्ञापन संख्या १८/२०१३ में आवेदन मांगे हैं पर यहाँ भी विकलांग डॉक्टर बायोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, न्यूरोलॉजी में आवेदन नहीं कर सकते हैं.
इसके अलावा upsc आवेदको से निर्धारित प्रपत्र में ही शारीरिक विकलांगता प्रमाण पत्र मांगते है और उसमे में भी उन्हें अपनी विकलांगता दर्शित करनी है. एक विकलांग जनो के नैतिक अधिकारो का हनन है. मुख्य आयुक्त निशक्तजन ने कई बार आदेश पारित किये हैं कि एक विकलांगता प्रमाण पत्र होने के बावजूद बार बार प्रमाण पत्र बनाने कि जरूरत नहीं. डॉ सिंह ने इन दोनों बातो को फिर से मुख्य आयुक्त निशक्तजन के कोर्ट में उठाया है ताकि बाकी विकलांग डॉक्टर अपने अधिकारो का लाभ ले सकें.
हिंदी दैनिक राष्ट्रीय उजाला ने यह खबर २८ नवंबर २०१३ के अंक में छापी है (चित्र नीच देखें)