साल्क (1955) और सेबिन (1962) टीकों के इस्तेमाल की स्वीकृति मिलने के बाद से दुनिया के लगभग सभी देशों से पोलियोमाइलिटिस (शिशु अंगघात) का उन्मूलन हो चुका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन, डब्ल्यूटीओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में 1.2 करोड़ लोग किसी न किसी हद तक विकलांगता पोलियो माइलिटिस जन्य विकलांगता से ग्रस्त हैं। नेशनल सेंटर फ़ार हेल्थ स्टेटिस्टिक्स का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमरीका में 10 लाख लोग पोलियो से ग्रस्त रहे हैं। उनमें से 4,33,000 लोगों ने पक्षाघात की शिकायत है जिसकी वजह से किसी न किसी तरह की विकलांगता के शिकार हुए हैं।
पोलियो की मार से बचे इन लोगों में से अधिकतर लोगों ने बरसों सक्रिय जीवन जीया है, पोलियो की उनकी यादें कब की भूल चुकी हैं और उनके स्वास्थ्य स्थिर हैं। 1970 के दशक के अंतिम बरसों के आते-आते पोलियो से बचे लोग थकान, दर्द, सांस लेने या निकलने में तकलीफ और अतिरिक्त थकान जैसी नयी समस्याएं महसूस करने लगे। चिकित्सा व्यवसायिकों ने इसे पोलियोत्तर संलक्षण (पोस्ट पोलियो सिंड्रोम, पीपीएस) नाम दिया। पोलियोत्तर संलक्षण से जुड़ी थकान महसूस करते हैं कुछ लोग जो फ्लू में महसूस होने वाली निढाल कर देने वाली थकान होती है और समय बीतने के साथ और बढ़ती जाती है। इस तरह की थकान शारीरिक गतिविधयों के दौरान और बढ़ जाती है और मानसिक एकाग्रता और याददाश्त की भी समस्या पैदा कर सकती है। कुछ लोग पेशीय थकान अनुभव करते हैं जो एक तरह की पेशीय दुर्बलता होती है और व्यायाम करने पर बढ़ती और आराम कर लेने पर कम हो जाती है।
हालिया अनुसंधान संकेत करते हैं कि व्यक्ति जितनी लंबी अवधि तक पोलियो के अवशिष्टों के साथ जीता है, वह अवधि उसकी कालक्रमिक आयु जितनी ही जोखिम कारक होती है। यह भी प्रतीत होता है कि जो लोग सबसे गंभीर किस्म के अंगघात का अनुभव करते हैं और जिनके क्रिया-कलापों में सबसे ज्यादा सुधार आया होता है वे अब उन लोगों के मुकाबले ज्यादा परेशानी अनुभव करते हैं मूलत: जिनके अंगघात कम गंभीर रहे होते हैं।
पोलियोत्तर लक्षणों पर मौजूदा आम राय तंत्रिका कोशिकाओं और उनसे जुड़े पेशीय तंतुओं पर ध्यान केंद्रित करती है। जब पोलियो के विषाणु मोटर न्यूरान्स को क्षत्रिग्रस्त कर देते हैं या नष्ट कर देते हैं पेशीय तंतु अनाथ हो जाते हैं और उन्हें लकवा मार जाता है। पोलियो के हमले से बच जाने पर ऐसे लोग फिर से इसलिए चलने-फिरने लगते हैं कि तंत्रिका कोशिकाएं किसी हद ठीक हो जाती हैं। उसके बाद हालत में जो सुधार आते हैं आस-पास की अप्रभावित तंत्रिका कोशिकाओं की ‘पल्लवित’ होने और अनाथ कोशिकाओं के साथ फिर से जुड़ने की क्षमता का नतीजा होते हैं।
इस पुनर्गिठत तंत्रिका पेशीय प्रणाली के साथ बरसों से जीवित उत्तरजीवी अब दुष्परिणाम अनुभव कर रहे हैं—थकी हुई तंत्रिका कोशिकाएं और थकी हुई पेशियां और जोड़ ऊपर से बढ़ती उम्र के प्रभाव। हालांकि इनके विषाणु जन्य कारणों की खोज जारी है लेकिन इस अवधारणा की पुष्टि करने वाले निर्णायक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि पोलियोत्तर संलक्षण पोलियो विषाणु के पुनर्संक्रमण का नतीजा हैं।
पोलियो के उत्तरजीवी नियमित समयांतराल पर चिकित्सकीय मदद लेकर, खान-पान में सावधानी बरत कर, ज्यादा वजन वृद्धि टाल कर और धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से परहेज करके अपनी सेहत की देख-भाल करते हैं।
उत्तरजीवियों को अपने शरीर की आवाज सुननी चाहिए। ऐसी गतिविधियों से बचना चाहिए जिनसे दर्द होता है-यह खतरे का संकेत है। बेरोक-टोक दर्द निवारक दवाइयों, विशेष कर स्वापकों के सेवन से बचें। पेशियों का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें लेकिन नियमित रूप से ऐसे काम-काज करते रहें जिनसे रोग के लक्षण और खराब न हों, विशेषत: व्यायाम न करें या दर्द होने पर व्यायाम जारी न रखें। ऐसे कामों से परहेज करें जिनसे दस मिनट से ज्यादा समय तक बनी रहने वाली थकान आती हो। अनावश्यक कामों से परहेज करके ऊर्जा बचायें।
पोलियोत्तर संलक्षण जानलेवा नहीं होते लेकिन ये गौण किस्म की तकलीफ और विकलांगता पैदा कर सकते हैं। बहुतायत से होने वाली पोलियोत्तर संलक्षण जन्य अक्षमता है चलने-फिरने की क्षमता का ह्रास। पोलियोत्तर संलक्षण से पीड़ित व्यक्तियों को खाना पकाने, धुलाई करने, खरीददारी और ड्राइविंग करने-जैसी दैन्य-दिन गतिविधियों के निष्पादन में भी कठिनाई हो सकती है। छड़ी, बैसाखी, वाकर, ह्वील चेयर या बिजली से चलने वाले स्कूटर कुछ लोगों के लिए अनिवार्य हो सकते हैं। तकलीफ ज्यादा होने पर इन व्यक्तियों को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है या सिरे से काम करना बंद करना पड़ सकता है।
बहुत से लोगों को अपनी नयी विकलांगता के साथ तालमेल बनाने में कठिनाई होती है। पोलियोत्तर संलक्षण से पीड़ित कुछ लोगों के लिए फिर से बचपन की पोलियो की अनुभूति के साथ जीना आघातकारी, यहां तक कि संत्रासक हो सकता है। सौभाग्य से चिकित्सकीय समुदाय का ध्यान बड़ी तेजी से पीपीएस की ओर आकर्षित हो रहा है और ऐसे स्वास्थ्य रक्षा व्यवसायिकों की तादाद बढ़ रही है जो पीपीएस को बेहतर ढंग से समझते हैं और उचित चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक सहायता कर सकते हैं; इसके अलावा पीपीएस सहायक समूह, परचे और शैक्षणिक तंत्र भी हैं जो पीपीएस के बारे में अद्यतन जानकारियां देने के साथ-साथ लोगों को इस बात की भी जानकारी देते हैं कि अपने संघर्ष में वे अकेले नहीं हैं।
स्रोत: पोस्ट पोलियो हेल्थ इंटरनेशनल, मांट्रियल न्यूरोलॉजिकल हॉस्पिटल पोस्ट-पोलियो क्लिनिक।
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