Sunday, April 30, 2017

UP Minister Could Become First to Be Tried Under New Disability Law

A complaint against a minister in the Adityanath government in Uttar Pradesh, who had publicly ridiculed a disabled employee during a surprise visit to an office in Lucknow, could become the first to be covered by the new disability law, which came into effect on Thursday (April 20).

Delhi-based disability rights activist Satendra Singh filed the case under Section 92(a) of the Rights of Persons with Disabilities Act, 2016:
  “...whoever intentionally insults or intimidates with intent to humiliate a person with disability in any place within public view” shall be “punishable with imprisonment for a term which shall not be less than six months but which may extend to five years and with fine”.


Singh also pointed out that the incident occurred in Lucknow in the same month when a person with disability was elected president in another country. Lenin Moreno, who is a wheelchair user, was elected president of Ecuador on April 2. 

Read the full report at The Wire here.



Another report by TOI



New Disability Law: Doctor files case against UP Minister


NEW DELHI: A Delhi University doctor associated with the University College of Medical Science (UCMS) on Thursday filed the first case under the new disability law against Uttar Pradesh minister of khadi and village industries, Satyadev Pachauri for publicly ridiculing a disabled employee.

Dr Satendra Singh lodged a complaint with the state commissioner for persons with disabilities in Lucknow, under Section 92 (a) of the Rights of Persons with Disability Act 2016. In his complaint, Singh, a disability rights activist, alleged that Pachauri humiliated a Class IV employee during his visit to an office in Lucknow on April 19.    

 

According to Singh, "Section 92 (a) of the Disability Act states that anyone who intentionally insults or intimidates with intent to humiliate a person with disability in any place within public view shall be punishable with imprisonment for a term which shall not be less than six months but which may extend to five years with fine."
In his complaint, Singh attached five media reports, including visual links from private news channels about the incident. "The minister ridiculed the entire (disabled) community, and as a disabled person and a resident of Uttar Pradesh, I am pursuing this case," said Singh.

On whether action can be taken on the minister under the new disability law, Singh didn't sound too optimistic. "As I said earlier, we will have to see what this new law has to offer. We all know it's a paper tiger," he added.

Pachauri, during his visit to the Khadi and Village Industries Board office in Lucknow on April 19 found that over one-third of the employees were absent. After ordering a day's salary cut, he started counting the number of staffers present.

While taking count of the employees, he questioned a disabled Class IV staff whether he was a permanent employee. When the disabled employee told Pachauri that he was a contractual staffer, the minister turned towards the chief executive officer and said: "Lulay langdon ko samvida par rakh liya hai, yeh kya kaam karega." (You have kept those suffering from disability of the limbs on contract, what work will he do).

Times of India: 23 April 2017

Saturday, April 15, 2017

'दिव्यांगों के अधिकार' से जुडे़ कानून के नियमों पर विवाद

पीएम नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगों को उनका सम्मान और गरिमा देने के मकसद से संसद के पिछले शीतकालीन सत्र में आनन फानन में 'दिव्यांगों के अधिकार' से जुड़ा बिल पास करा कर उसके कानून की शक्ल तो दे दी, लेकिन जब उसकी कानून के नियमों को बनाने की बात आई तो उसमें ऐसे नियमों काे रखा जा रहा है, जो दिव्यांगों की मदद करने की बजाय उनके लिए अवरोध की वजह बन सकते हैं। जिसे लेकर दिव्यांगों से जुड़े तमाम स्टेक होल्डर्स के बीच से विरोध हो रहा है। हालांकि, विरोध के बाद हाल ही में इसके एक नियम में बदलाव किया।
उल्लेखनीय है कि गत 10 मार्च को सरकार ने इस कानून से जुडे़ नियमों का ड्राफ्ट पब्लिक डोमेन में डालकर आम जनता व स्टेक होल्डर्स के बीच रायशुमारी की कवायद की। एक महीने के भीतर लोगों को अपनी राय देनी थी। लेकिन इन नियमों के ड्राफ्ट को लेकर कई पक्षों से विरोध व आपत्तियां सामने आने लगीं। इन ड्राफ्ट में जिन तीन मुद्दों पर खासा विरोध और विवाद है, वह कानून की नियम 3(3) को लेकर है, जो दिव्यांगों के साथ होने वाले भेदभाव से जुड़ा है।
अधिकार से जुडा़ कानून कहता है कि किसी भी दिव्यांग के साथ दिव्यांगता को लेकर भेदभाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इस धारा में कहा गया है कि कानूनी या उचित मकसद का हवाला देकर दिव्यांग काे किसी अधिकार या सुविधा से मना भी किया जा सकता है। नियमों में जुड़े ड्राफ्ट में इस धारा में सिर्फ सरकार को शामिल किया गया था, जबकि प्राइवेट को इससे बाहर रखा गया था। इसी मुद्दे को लेकर स्टेक होल्डर्स की ओर से खासा विरोध हुआ। उनका कहना था कि यह दिव्यांगों के साथ भेदभाव या सुविधा से जुड़ा मुद्दा सिर्फ सरकार से जुड़ा ही नहीं होना चाहिए, प्राइवेट संस्थानों में इसे लागू होना चाहिए। दरअसल, स्टेक होल्डर्स का मानना है कि इससे कहीं न कहीं प्राइवेट पक्षों को बचने का रास्ता मिलता है।
उल्लेखनीय है कि इस कानून के बनने के बाद सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय ने कानून के नियमों को बनाने के लिए मंत्रालय के सीनियर अधिकारी की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय कमिटी का गठन किया था। इसी कमिटी ने ने कानून से नियमों का ड्राफ्ट तैयार किया। जिसे रायशुमारी के लिए पब्लिक डोमेन में डाला गया था। सूत्रों के मुताबिक, इसके नियम 3(3) को लेकर सामने आए विरोध व विवाद के बाद कमिटि ने इसमें बदलाव करते हुए इस नियम में प्राइवेट संस्थानों को शामिल कर लिया। गुरुवार को कमिटि की हुई मीटिंग में यह फैसला लिया गया।
इस नियमों में पक्षकारों और दिव्यांगों के अधकारों के लिए काम कर रही संस्थाओं की आपत्ति दिव्यांगों की सहज पहुंच या एक्सेसिबिलिटी से जुड़े नियम को लेकर भी है। नियम में कहा गया है कि किसी भी बिल्डिंग को बनाते समय दिव्यांगों की सुविधा का ख्याल रखते समय बिल्डिंग बाइलाॅज की गाइडलाइन काे आधार माना जाए। जबकि दिव्यांगों के लिए काम कर रहे लोगों को कहना है कि बिल्डिंग बाइलाॅज की गाइडलाइन नैशनल बिल्डिंग कोड के स्टैंडर्ड को माना जाए। इन लोगों का तर्क है कि हर राज्य में बिल्डिंग बाइलाॅज अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन नैशनल बिल्डिंग कोड एक ही होगा। इस बारे में जीटीबी हॉस्पिटल के असोसिएट प्रफेसर डॉ सतेंद्र सिंह का कहना था कि इस अाधार पर विकलांगो के हितों को बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।
इतना ही नहीं तमाम पक्षकारों का मानना है कि दिव्यांगता विभाग के चीफ कमिश्नर को स्वायत्त शक्तियां दी जाएं। दरअसल, कानून में उसे अडवाइजरी पावर दी गई हैं। इन लोगों का मानना है कि चीफ कमिश्नर के साथ अडवाइजरी पावर का लेबल चिपका कर उसे एक कागजी शेर बना दिया गया है।

~ मंजरी चतुर्वेदी, नवभारत टाइम्स १५ अप्रैल २०१७



Tuesday, April 11, 2017

Activists slams discriminatory clause in new Disability Act



The Wire reports that the contentious clause allows establishments to discriminate against persons with disabilities if there is a “legitimate aim”.

Even before it has been implemented, the Rights of Persons with Disabilities Bill, 2016, which was notified by the parliament in the winter session, has run into a major controversy with the primary stakeholders – persons with disabilities – questioning the clause that allows establishments to discriminate against them provided there is a “legitimate aim” and for taking the private sector out of the purview of the Act. Moreover, while the Centre had promised to address the issue while framing the rules under the Act, the same has not been reflected in the draft rules circulated earlier this month.
Read the complete story here.

Activists express concern over gaping loopholes in RPwD Rules

    Rights of Persons with Disabilities Rules 2017


Source: The Pioneer 11 April 2017