पीएम नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगों को उनका सम्मान और गरिमा देने के मकसद से संसद के पिछले शीतकालीन सत्र में आनन फानन में 'दिव्यांगों के अधिकार' से जुड़ा बिल पास करा कर उसके कानून की शक्ल तो दे दी, लेकिन जब उसकी कानून के नियमों को बनाने की बात आई तो उसमें ऐसे नियमों काे रखा जा रहा है, जो दिव्यांगों की मदद करने की बजाय उनके लिए अवरोध की वजह बन सकते हैं। जिसे लेकर दिव्यांगों से जुड़े तमाम स्टेक होल्डर्स के बीच से विरोध हो रहा है। हालांकि, विरोध के बाद हाल ही में इसके एक नियम में बदलाव किया।
उल्लेखनीय है कि गत 10 मार्च को सरकार ने इस कानून से जुडे़ नियमों का ड्राफ्ट पब्लिक डोमेन में डालकर आम जनता व स्टेक होल्डर्स के बीच रायशुमारी की कवायद की। एक महीने के भीतर लोगों को अपनी राय देनी थी। लेकिन इन नियमों के ड्राफ्ट को लेकर कई पक्षों से विरोध व आपत्तियां सामने आने लगीं। इन ड्राफ्ट में जिन तीन मुद्दों पर खासा विरोध और विवाद है, वह कानून की नियम 3(3) को लेकर है, जो दिव्यांगों के साथ होने वाले भेदभाव से जुड़ा है।
अधिकार से जुडा़ कानून कहता है कि किसी भी दिव्यांग के साथ दिव्यांगता को लेकर भेदभाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इस धारा में कहा गया है कि कानूनी या उचित मकसद का हवाला देकर दिव्यांग काे किसी अधिकार या सुविधा से मना भी किया जा सकता है। नियमों में जुड़े ड्राफ्ट में इस धारा में सिर्फ सरकार को शामिल किया गया था, जबकि प्राइवेट को इससे बाहर रखा गया था। इसी मुद्दे को लेकर स्टेक होल्डर्स की ओर से खासा विरोध हुआ। उनका कहना था कि यह दिव्यांगों के साथ भेदभाव या सुविधा से जुड़ा मुद्दा सिर्फ सरकार से जुड़ा ही नहीं होना चाहिए, प्राइवेट संस्थानों में इसे लागू होना चाहिए। दरअसल, स्टेक होल्डर्स का मानना है कि इससे कहीं न कहीं प्राइवेट पक्षों को बचने का रास्ता मिलता है।
उल्लेखनीय है कि इस कानून के बनने के बाद सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय ने कानून के नियमों को बनाने के लिए मंत्रालय के सीनियर अधिकारी की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय कमिटी का गठन किया था। इसी कमिटी ने ने कानून से नियमों का ड्राफ्ट तैयार किया। जिसे रायशुमारी के लिए पब्लिक डोमेन में डाला गया था। सूत्रों के मुताबिक, इसके नियम 3(3) को लेकर सामने आए विरोध व विवाद के बाद कमिटि ने इसमें बदलाव करते हुए इस नियम में प्राइवेट संस्थानों को शामिल कर लिया। गुरुवार को कमिटि की हुई मीटिंग में यह फैसला लिया गया।
इस नियमों में पक्षकारों और दिव्यांगों के अधकारों के लिए काम कर रही संस्थाओं की आपत्ति दिव्यांगों की सहज पहुंच या एक्सेसिबिलिटी से जुड़े नियम को लेकर भी है। नियम में कहा गया है कि किसी भी बिल्डिंग को बनाते समय दिव्यांगों की सुविधा का ख्याल रखते समय बिल्डिंग बाइलाॅज की गाइडलाइन काे आधार माना जाए। जबकि दिव्यांगों के लिए काम कर रहे लोगों को कहना है कि बिल्डिंग बाइलाॅज की गाइडलाइन नैशनल बिल्डिंग कोड के स्टैंडर्ड को माना जाए। इन लोगों का तर्क है कि हर राज्य में बिल्डिंग बाइलाॅज अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन नैशनल बिल्डिंग कोड एक ही होगा। इस बारे में जीटीबी हॉस्पिटल के असोसिएट प्रफेसर डॉ सतेंद्र सिंह का कहना था कि इस अाधार पर विकलांगो के हितों को बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।
इतना ही नहीं तमाम पक्षकारों का मानना है कि दिव्यांगता विभाग के चीफ कमिश्नर को स्वायत्त शक्तियां दी जाएं। दरअसल, कानून में उसे अडवाइजरी पावर दी गई हैं। इन लोगों का मानना है कि चीफ कमिश्नर के साथ अडवाइजरी पावर का लेबल चिपका कर उसे एक कागजी शेर बना दिया गया है।
~ मंजरी चतुर्वेदी, नवभारत टाइम्स १५ अप्रैल २०१७
~ मंजरी चतुर्वेदी, नवभारत टाइम्स १५ अप्रैल २०१७
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