एक हजार से अधिक केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा (सीएचएस) की नौकरियों से विकलांग डॉक्टरों को बाहर रखने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने सीएचएस के शिक्षण, गैर-शिक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ काडरों को विकलांग डॉक्टरों
के
लिए
खोलने का फैसला किया है।
यह
निर्णय
न्याय के लिए एक विकलांग
डॉक्टर की चार साल से अधिक
अथक लड़ाई का परिणाम है।
यह सब 2011में शुरू हुआ जब डॉ सतेन्द्र सिंह, जो यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज और
गुरु तेग बहादुर अस्पताल
दिल्ली
में
2008 से
शरीर विज्ञान
(फिजियोलॉजी) के सहायक प्रोफेसर है, ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के माध्यम से सीएचएस के
शिक्षण विशेषज्ञ सहायक प्रोफेसर (शरीर क्रिया विज्ञान) के पद के लिए आवेदन किया। वह इसी पद पर कार्यरत थे पर उन्हें साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया।
डॉ सिंह, जिनका दाहिना पैर पोलियो से प्रभावित है, 70% विकलांगता से
प्रमाणित है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया मेडिकल कॉलेज प्रवेश
में
, केवल निचले अंग की
40% और 70% के बीच विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए 3% आरक्षण देता है। तथापि, ऐसी कई छात्रों को, जिन्होंने एमबीबीएस और पोस्ट-स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी कर ली को संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से भर्ती की जाने वाली विशेषज्ञ सेवाओं से बाहर रखा गया। '
'
उन्हें कभी नहीं बताया जाता है की
संघ लोक सेवा आयोग
ने उनका आवेदन क्यों ख़ारिज किया । मैं एक स्थायी नौकरी
में
हूँ। मैं दिल्ली में हूँ। अस्वीकार कर दिए गए कितने विकलांग डॉक्टर अदालत में या यहां तक कि संघ लोक सेवा आयोग
में जाते हैं?'
'
डॉ सिंह, जो दिल्ली मेडिकल काउंसिल
के
भी एक सदस्य
हैं,
ने कहा।
डॉ सिंह के
मुताबिक उन्होंने उन्होंने अपनी विकलांगता का उल्लेख इसीलिए किया क्योंकि यह आवेदन पत्र की मांग की थी
ना की विकलांग कोटा का फायदा उठाने के लिए (इस पोस्ट पर वैसे भी विकलांग कोटा नहीं है)।
साक्षात्कार
कॉल नहीं आने पर मैंने संघ लोक सेवा आयोग में पता किया जिस पर उन्होंने मुझे बताया की विकलांग होने के कारण मुझे उपयुक्त नहीं पाया गया है
।
यह
इस तथ्य के बावजूद कि मैं केंद्र सरकार
के अधीन एक मेडिकल कॉलेज
में स्थायी पद पर सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहां हूँ, डा.सिंह ने कहा।
तत्पश्चात् उन्होंने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में केस किया
जिसके बाद
संघ लोक सेवा आयोग
ने उन्हें
साक्षात्कार के लिए के लिए बुलाया पर चयनित नहीं किया। 2013 में में उन्होंने इसी पद के लिए दुबारा से फिर आवेदन किया ताकि पता चले की इन लोग का रवैय्या विकलांग प्रार्थियों के लिए बदला है या नहीं। ऑनलाइन पंजीकरण
में जब उन्होंने विकलांगता, प्रकार और प्रतिशत के बक्से भरे तो उन्हें
जवाब मिला "क्षमा करें, आप इस पद के लिए योग्य नहीं हैं।" इन वर्षो में फिर से कुछ भी नहीं बदला था।
डॉ सिंह ने
अनुमति प्राप्त करने के लिए
न्यायालय मुख्य आयुक्त
निशक्तजन की अदालत का दरवाजा खटखटाया और
स्वास्थ्य मंत्रालय
को भी लिखा। उन्हें तुरंत अनुमति मिल गयी पर संघ लोक सेवा आयोग ने कुछ अज्ञात कारणों से शरीर विज्ञान में हो रहे सभी साक्षात्कार को रद्द कर दिया।
"मुझे आवेदन की अनुमति दी गयी पर मेरे जैसे अन्य
विकलांग उम्मीदवारों के बारे में क्या? मैं चाहता हूँ यह नीति सभी विकलांग अभ्यर्थियों के लिए बदली जाये ना सिर्फ मेरे लिए और इसलिए मैंने इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया," डॉ सिंह ने कहा।
एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से, डॉ सिंह को पता चला कि सीएचएस के तहत
सभी विशेषज्ञ
पद (शिक्षण, गैर-शिक्षण या सार्वजनिक स्वास्थ्य
)
, विकलांग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नहीं पाये गए हैं।
"एक एमबीबीएस या एमडी / एमएस (स्नातकोत्तर) की डिग्री
के लिए
सभी विकलांग मेडिकल छात्रों को इंटर्नशिप के दौरान आपरेशन थिएटर, ओपीडी और आपातकालीन पोस्टिंग में पूर्णता भाग
लेना
होता है। इन सब को करने के बावजूद वे कैसे हमें अनुपयुक्त कह सकते हैं?
यह तो चौंकाने वाला था।
इसीलिए दिसंबर 2014 में, मैंने सीएचएस के तहत सभी विशेषज्ञ पदों को विकलांग डॉक्टरों के लिए
खोले जाने का अनुरोध स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिख कर किया "डॉ सिंह ने कहा।
यद्यपि
स्वास्थ्य
मंत्री
ने
कार्यवाही की पर बार-बार मंत्रालय के अधिकारियों
को
अनुस्मारक भेजने के बाद
व बार बार फ़ोन करने के पश्चात ही डॉ सिंह
को बताया गया की सभी सीएचएस पदों को
विकलांग व्यक्तियों के लिए डॉक्टरों के लिए
खोले जाने का अनुरोध
मान लिया गया है। तथापि, उन्हें आदेश की प्रति नहीं दी गयी।
अंत में 6 जून को एक आरटीआई आवेदन
से उन्होंने यह
प्रतिलिपि प्राप्त की।
डॉ सिंह के हठ के लिए धन्यवाद, शिक्षण विशेषज्ञ उप संवर्ग में 756 पदों, गैर-शिक्षण विशेषज्ञ उप संवर्ग में 770 पदों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ उप संवर्ग में 78 पदों को विकलांग डॉक्टरों के लिए खोल दिया गया है।
"प्रधानमंत्री मोदी
ने
विश्व विकलांगता दिवस के अवसर पर ट्वीट
कर हम विकलांग लोगों को 'हीरोज'
/
नायक
कहा। दुर्भाग्यवश इन नायकों को
अपने अधिकारों के लिए अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं और एक सरकारी डॉक्टर को एक सरकारी आदेश प्राप्त करने के लिए एक आरटीआई दायर करने पर विवश होना पड़ता है
,"
डॉ सिंह ने कहा।
http://timesofindia.indiatimes.com/india/One-mans-crusade-opens-up-CHS-jobs-for-disabled-doctors/articleshow/47661044.cms
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